दोषैरेतैः कुलजानां वर्णसङ्करकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः॥43॥
दोषैः-दुष्कर्मों से; एतैः-इन सब; कुलघ्नानाम्-अपने परिवार को नष्ट करने वालों का; वर्ण-सङ्कर अवांछित संतानों के कारकैः-कारणों से; उत्साद्यन्ते नष्ट हो जाते हैं; जाति-धर्माः-सामुदायिक और परिवार कल्याण की योजनाएँ; कुल-धर्माः-पारिवारिक परम्पराएँ; च-भी; शाश्वता:-सनातन।
Translation
BG 1.43: अपने दुष्कर्मों से कुल परम्परा का विनाश करने वाले दुराचारियों के कारण समाज में अवांछित सन्तानों की वृद्धि होती है और विविध प्रकार की सामुदायिक और कुटुंब तथा पारिवारिक कल्याण की गतिविधियों का भी विनाश हो जाता है।
Commentary
सनातन-धर्म या वर्णाश्रम द्वारा निर्धारित चारों वर्गों के लिए सामुदायिक योजनाएं इसलिए नियोजित हैं कि मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सके। अतः समाज के निकृष्ट जनों द्वारा सनातन परम्परा के विखण्डन से उस समाज में अव्यवस्था फैलती है, फलस्वरूप लोग जीवन के उद्देश्य भगवत्प्राप्ति को भूल जाते हैं। ऐसे नायक अंधे कहलाते हैं और जो लोग इनका अनुगमन करते हैं वे निश्चय ही कुव्यवस्था की ओर अग्रसर होते हैं।