महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ॥6॥
महा-ऋषयः-महर्षिः सप्त-सात; पूर्वे-पहले; चत्वारः-चार; मनवः-मनुः तथा—भी; मत्-भावाः-मुझसे उत्पन्न; मानसाः-मन से; जाता:-उत्पन्न; येषाम्-जिनकी; लोके-संसार में; इमा:-ये सब; प्रजाः-लोग।
Translation
BG 10.6: सप्त महर्षिगण और उनसे पूर्व चार महर्षि और चौदह मनु सब मेरे मन से उत्पन्न हुए हैं तथा संसार में निवास करने वाले सभी जीव उनसे उत्पन्न हुए हैं।
Commentary
यहाँ श्रीकृष्ण निरन्तर यह स्पष्ट कर रहे हैं कि वे किस प्रकार से सभी अस्तित्वों के स्रोत हैं। पहले उन्होंने बीस भावों का उल्लेख किया। अब वे पच्चीस सिद्ध महानुभावों का वर्णन कर रहे हैं। इनमें सात महर्षि, चार महान ऋषि और चौदह मनु हैं। वे उनसे उत्पन्न ब्रह्माण्ड की वंशावली का भी निरूपण करते हैं।
ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु की 'हिरण्यगर्भ' शक्ति (भगवान का वह रूप जो पंचमहाभूतों से निर्मित सृष्टि का पालन करता है।) से हुई। ब्रह्मा से चार महर्षि सनक, सनंदन, सनत, सनातन उत्पन्न हुए। इन्हें चार कुमार भी कहा जाता है। हमारे ब्रह्माण्ड में चारों कुमार ब्रह्मा के सबसे ज्येष्ठ पुत्र हैं क्योंकि अकेले पिता के मन से इनका अलैंगिक जन्म हुआ था इसलिए इनकी माता नहीं थी। नित्य मुक्त आत्मा और योग विज्ञान के ज्ञाता होने के कारण वे आध्यात्मिक साधना द्वारा अन्य जीवों को सांसारिक बंधनों से मुक्त करवाने के प्रयोजनार्थ सहायता करने में समर्थ थे। चार कुमारों के पश्चात सप्त महर्षियों का जन्म हुआ। ये मारीच, अंगीरा, अत्री, पुल्स्तय, पुलाह, कृतु और वशिष्ठ हैं। इन्हें मानव जाति के प्रजनन में वृद्धि करने का दायित्व सौंपा गया था। इसके पश्चात स्वयंभुव, स्वरोचिष, उत्तम, तमस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सवर्णी, दक्षसवर्णी, ब्रह्मसवर्णी, धर्मसवर्णी, रुद्र-पुत्र, रौच्य और भौतयक नामक चौदह मनुओं का जन्म हुआ। इन सभी को स्वर्गलोक से मानव जाति के कल्याणार्थ शासन करने तथा वैदिक धर्म का प्रचार और उसकी रक्षा करने का अधिकार दिया गया। हम वर्तमान में सातवें मनु जिसे वैवस्वत मनु कहा जाता है, के युग में रह रहे हैं। इसलिए इस युग को वैवस्वत मनवन्तर कहा जाता है। वर्तमान कल्प (ब्रह्मा के दिन) में अभी सात और मनु हैं जिनका युग आना अभी शेष है। स्वर्गलोक में अनेक देवता हैं जो ब्रह्माण्ड की देखभाल करने का दायित्व निर्वहन कर रहें हैं। ये सब दैव पुरुष ब्रह्मा के पुत्र और पौत्र हैं जो भगवान विष्णु से उत्पन्न हैं और वे भगवान श्रीकृष्ण के विस्तार से भिन्न नहीं हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण ही सभी पितामहों के पूर्वज प्रपितामह हैं।