लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥25॥
लभन्ते–प्राप्त करना; ब्रह्मनिर्वाणम्-भौतिक जीवन से मुक्ति; ऋषयः-पवित्र मनुष्य; क्षीण-कल्मषा:-जिसके पाप धुल गए हों; छिन्न-संहार; द्वैधाः-संदेह से; यत-आत्मानः-संयमित मन वाले; सर्वभूत-समस्त जीवों के; हिते-कल्याण के कार्य; रताः-आनन्दित होना।
Translation
BG 5.25: वे पवित्र मनुष्य जिनके पाप धुल जाते हैं और जिनके संशय मिट जाते हैं और जिनका मन संयमित होता है वे सभी प्राणियों के कल्याणार्थ समर्पित हो जाते हैं तथा वे भगवान को पा लेते हैं और सांसारिक बंधनों से भी मुक्त हो जाते हैं।
Commentary
गत श्लोक में श्रीकृष्ण ने उन साधुओं की अवस्था को व्यक्त किया है जो अपने भीतर भगवान के सुख को अनुभव करते हैं। इस श्लोक में वे उन संत महात्माओं की अवस्था का वर्णन कर रहे हैं, जो सक्रियता से सभी प्राणियों के कल्याण के कार्य में रत रहते हैं। रामचरितमानस में वर्णन है
पर उपकार बचन मन काया।
संत सहज सुभाउ खगराया।।
"करुणा का लक्षण संतो की स्वाभाविक प्रकृति है। इससे प्रेरित होकर वे अपनी वाणी, मन और शरीर का प्रयोग दूसरों के कल्याण के लिए करते हैं।" । मानव कल्याण प्रशंसनीय कार्य है किन्तु केवल शरीर की कल्याण संबंधी योजनाओं के कार्यान्वयन का परिणाम भी केवल अस्थायी कल्याण तक सीमित रहता है। एक भूखे व्यक्ति को जब भोजन परोसा जाता है तब उसकी भूख शांत हो जाती है किन्तु चार घंटे के पश्चात उसे फिर भूख लगती है। आत्मिक कल्याण के अन्तर्गत सभी प्रकार के लौकिक कष्टों की जड़ तक पहुंचकर जीवात्मा में भगवद्चेतना को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता है। इसलिए परम कल्याण का कार्य मनुष्य की चेतना को भगवचेतना के साथ जोड़ने में सहायता करता है। इस प्रकार के कल्याणकारी कार्य में सिद्ध आत्माएँ शुद्ध मन से तल्लीन रहती हैं। ऐसे कल्याणकारी कार्य से आगे भी भगवान की कृपा प्राप्त होती है जो उन्हें इस मार्ग की ओर अग्रसर होने के लिए और अधिक उन्नत करती हैं। अन्त में जब वे मन को पूर्णतः शुद्ध कर भगवान के पूर्ण शरणागत हो जाते हैं तब वे मुक्त होकर दिव्य आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश कर परमात्मा का दिव्य लोक प्राप्त कर लेते हैं।
इसलिए इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग के मार्ग की प्रशंसा की है। अब वे शेष श्लोकों में कर्म संन्यास की व्याख्या करते हुए यह अवगत करा रहे हैं कि कर्म संन्यासी भी अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।