Bhagavad Gita: Chapter 11, Verse 52-53

श्रीभगवानउवाच।
सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम ।
देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाड्.क्षिणः ॥52॥
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया ।
शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा ॥53॥

श्रीभगवान् उवाच-परम् प्रभु ने कहा; सु-दुर्दर्शम्-देख पाना अति कठिन है; इदम्-इस; रुपम्-रूप को; दृष्टवान् असि-जो तुमने देखा; यत्-जो; मम–मेरे; देवा:-स्वर्ग के देवता; अपि-भी; अस्य-इस; रुपस्य-रूप का; नित्यम्-शाश्वत; दर्शन-काड्.क्षिणः-दर्शन की अभिलाषा; न कभी नहीं; अहम्-मैं; वेदैः-वेदाध्ययन से; न कभी नहीं; तपसा-कठिन तपस्या द्वारा; न कभी नहीं; दानेन-दान से; न कभी नहीं; च–भी; इज्यया-पूजा से; शक्यः-यह सम्भव है; एवम्-विधः-इस प्रकार से; द्रष्टुम् देख पाना; दृष्टवान्–देख रहे; असि-तुम हो; माम्-मुझको; यथा-जिस प्रकार।

Translation

BG 11.52-53: परम प्रभु ने कहा-मेरे जिस रूप का तुम अवलोकन कर रहे हो उसे देख पाना अति दुष्कर है। यहाँ तक कि स्वर्ग के देवताओं को भी इसका दर्शन करने की उत्कंठा होती है। मेरे इस रूप को न तो वेदों के अध्ययन, न ही तपस्या, दान और यज्ञों जैसे साधनों द्वारा देखा जा सकता है जैसाकि तुमने देखा है।

Commentary

अर्जुन को अपना विराटरूप दिखाने और उसकी सराहना करने के पश्चात तथा उसका दर्शन अन्यों के लिए दुर्लभ बताते हुए अब श्रीकृष्ण अपने साकार भगवान वाले रूप के लिए अर्जुन के सखा भाव के प्रेम को कम नहीं करना चाहते। वे इस पर बल देते हुए कहते हैं कि स्वर्ग के देवता भी भगवान को उनके दो भुजा वाले उस साकार रूप में देखना चाहते हैं जिस रूप में वे अर्जुन के समक्ष खड़े हैं। इस रूप को किसी प्रकार के वैदिक अध्ययनों, तपस्याओं और यज्ञों द्वारा देखा जाना संभव नहीं है। आध्यात्मिकता का मुख्य सिद्धान्त यह है कि भगवान को हम अपने प्रयत्नों या सामर्थ्य द्वारा नहीं जान सकते किन्तु जो भगवान की भक्ति में तल्लीन है ऐसे भक्त उनकी कृपा से उन्हें जानने की पात्रता प्राप्त कर लेते हैं तब उनकी कृपा से वे उन्हें सुगमता से देखने में समर्थ हो जाते हैं। मुंडकोपनिषद् में वर्णन है

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेध्या न बहुना श्रुतेना

(मुंडकोपनिषद्-3.2.3)

 "भगवान को आध्यात्मिक प्रवचनों या बुद्धि द्वारा जाना नहीं जा सकता। उसे विभिन्न प्रकार के उपदेशों को सुनकर भी नहीं जाना जा सकता"। अगर इन साधनों द्वारा भगवान के साकार रूप को जाना नहीं जा सकता तब फिर कैसे उन्हें इस रूप में देखा जा सकता है। अब आगे श्रीकृष्ण इसका रहस्योद्घाटन करेंगे।