अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्।
भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्यासिनां क्वचित् ॥12॥
अनिष्टम् दुखद; इष्टम्-सुखद; मिश्रम्-मिश्रित; च और; त्रि-विधम् तीन प्रकार के; कर्मणः-फलम् कर्मों के फल; भवति–होता है; अत्यागिनाम्-वे जो निजी पारितोषिक में आसक्त रहते हैं; प्रेत्य-मृत्यु के पश्चात; न-नहीं; तु-लेकिन; संन्यासिनाम्-कर्मों का त्याग करने वालों के लिए; क्वचित्-किसी समय।
Translation
BG 18.12: जो निजी पारितोषिक के प्रति आसक्त होते हैं उन्हें मृत्यु के पश्चात भी सुखद, दुखद और मिश्रित तीन प्रकार के कर्मफल प्राप्त होते हैं लेकिन जो अपने कर्मफलों का त्याग करते हैं उन्हें न तो इस लोक में और न ही मरणोपरांत ऐसे कर्मफल भोगने पड़ते हैं।
Commentary
मृत्यु के उपरांत आत्मा तीन प्रकार के फल प्राप्त करती है-(1) इष्टम अर्थात स्वर्गलोक के सुखद अनुभव। (2) अनिष्टम-अर्थात नरक लोक के दुखों का अनुभव। (3) मिश्रम्- अर्थात पृथ्वी लोक पर मानव के रूप में मिश्रित अनुभव। वे जो पुण्य कार्य करते हैं उन्हें स्वर्ग का उच्च लोक प्राप्त होता है तथा जो पापमय कार्य करते हैं उन्हें नरक के निम्न लोकों में भेजा जाता है। जो दोनों प्रकार के मिश्रित कार्य करते हैं उन्हें मानव के रूप में पृथ्वी लोक पर वापस भेज दिया जाता है। यह तभी क्रियान्वित होता है जब कर्मों का निष्पादन कर्मफल की कामना से किया जाता है। जब कर्म फल की ऐसी इच्छाओं का परित्याग कर दिया जाता है और कार्यों का संपादन केवल भगवान के प्रति कर्त्तव्य पालन की दृष्टि से किया जाता है तब कर्मों के ऐसे प्रतिफल प्राप्त नहीं होते। इस संसार में भी इसी प्रकार का नियम प्रचलित है। यदि एक व्यक्ति दूसरे को मारता है तो इसे हत्या माना जाता है जोकि एक अपराध है तथा जिसके लिए मृत्युदंड भी दिया जा सकता है। हालांकि यदि सरकार किसी कुख्यात हत्यारे अथवा चोर को जीवित या मृत प्रस्तुत करने की घोषणा करती है तब कानून की दृष्टि में ऐसे व्यक्ति की हत्या को अपराध नहीं माना जाएगा बल्कि ऐसे व्यक्ति को मारने वाले को सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाता है तथा हत्या करने वाले को राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मानित किया जाता है। समान रूप से जब हम अपने निजी स्वार्थ का परित्याग कर अपने कर्मों का संपादन करते हैं तब हमें कर्मों के तीन प्रकार के फलों को भोगना नहीं पड़ता।