देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥30॥
देही–शरीर में निवास करने वाली जीवात्मा; नित्यम्-सदैव; अवध्यः-अविनाशी; अयम् यह आत्मा; देहै-शरीर में; सर्वस्य–प्रत्येक; भारत-भरतवंशी, अर्जुन; तस्मात्-इसलिए; सर्वाणि-समस्त; भूतानि-जीवित प्राणी; न-नहीं; त्वम्-तुम; शोचितुम्–शोक करना; अर्हसि-चाहिए।
Translation
BG 2.30: हे अर्जुन! शरीर में निवास करने वाली आत्मा अविनाशी है इसलिए तुम्हें किसी प्राणी के लिए शोक नहीं करना चाहिए।
Commentary
अपने उपदेशों के अंतर्गत भगवान श्रीकृष्ण प्रायः कुछ श्लोकों में अपने दृष्टिकोण का वर्णन करते हैं और फिर वे एक श्लोक मे अपने उन उपदेशों का सार प्रस्तुत करते है। इस श्लोक में आत्मा की अमरता और शरीर से उसकी भिन्नता से संबंधित उपदेशों के सार का निरूपण किया गया है।